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Tuesday 13 June 2017

किसान को राजनीति नहीं, समाधान चाहिए (Dainik Bhaskar - 12 June 2017)

एम.वेंकैया नायडू सूचना-प्रसारणमंत्री
     कांग्रेस पार्टी फिर आग में घी डालने के अपने पुराने खेल पर लौटकर बेचैनी पैदा करने की कोशिश कर रही है। जैसी इसकी आदत है, यह मध्यप्रदेश के मंदसौर में किसानों के हिंसक आंदोलन के दौरान गोलीबारी में छह लोगों के मारे जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का राजनीतिक फायदा उठाने में लगी है। 

     यह बहुत दुख की बात है कि हिंसा में लोगों की जान गईं। जहां केंद्र में एनडीए सरकार और भाजपा किसानों की चिंताओं पर गौर कर रही है, विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस ऐसे दर्शा रही है जैसे कृषक समुदाय को एनडीए के सत्ता में आने के बाद ही समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पांच दशकों तक अपने राज के दौरान किसानों की उपेक्षा करने के बाद उनके बारे में बात करने का क्या कांग्रेस को कोई हक है? सच तो यह है कि किसानों की दशा यूपीए की लगातार दो सरकारों के दशक भर के शासन के दौरान खराब हुई, जब किसानों की आत्महत्याएं अत्यधिक बढ़ीं और कृषि में वृद्धि दर दो फीसदी से भी नीचे गिर गई। किसानों की समस्याओं का इस तरह राजनीतिकरण क्या खुला अवसरवाद नहीं है? सभी दलों को संकुचित राजनीतिक फायदों से परे जाकर स्थिति को सामान्य बनाने में मध्यप्रदेश और केंद्र सरकार का समर्थन करना चाहिए। दुर्भाग्य से भड़की हुई भावनाएं शांत करने की बजाय राजनीतिक दल ठीक इसके विपरीत चल रहे हैं। अन्यथा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दौड़कर मंदसौर पहुंचने की कोई कैसे सफाई देगा? जाहिर है उन्हें लगता है कि यह उन्हें मीडिया में आने का मौका देगा। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हिंसा भड़कने पर भी उन्होंने यही करने का प्रयास किया था। इसी तरह वे जेएनयू हैदराबाद यूनिवर्सिटी में 'सांस्कृतिक कार्यक्रम' और विरोध प्रदर्शन के बाद वहां पहुंच गए थे, जहां देश को बांटने और आतंकियों को महिमामंडित करने वाले नारे लगाए गए थे।

     यह सही है कि विभिन्न राज्यों से कृषि ऋण माफ करने की मांग की जा रही है लेकिन, निश्चित ही यह दीर्घावधि का समाधान नहीं है, क्योंकि इससे किसानों को अस्थायी राहत ही मिलती है। इसका एक ही समाधान है कि कृषि में लगने वाली चीजों की लागत पर नियंत्रण रखकर कृषि उपज की वाजिब कीमतें सुनिश्चित करना। सच तो यह है कि आरबीआई गर्वनर ने कृषि ऋण माफ करने के खिलाफ आगाह किया है। उन्होंने कहा है कि यदि राज्यों के पास इसकी वित्तीय गुंजाइश नहीं है तो पिछले कुछ वर्षों में वित्तीय अनुशासन से हमने जो कुछ भी हासिल किया है, वह खत्म हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले दिन से ही यह साफ कर दिया है कि गांव, गरीब, किसान, मजदूर, महिला और युवा उनकी सरकार की शीर्ष प्राथमिकताएं हैं। वर्ष 2022 तक किसान की आय दोगुनी करने के लिए कई किसान हितैषी पहल की गई हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसान की फसल के बीमा की दिशा में सबसे बड़ा योगदान है। इसमें न्यूनतम प्रीमियम के तहत अधिकतम मुआवजा देने की बात है और यह योजना सभी मौसम की सभी फसलों को दायरे में लेती है। 50,000 करोड़ रुपए की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हर खेत को पानी पहुंचाने का लक्ष्य है। करीब 7.1 करोड़ सॉइल हैल्थ कार्ड जारी किए गए हैं और लक्ष्य सभी 14 करोड़ किसानों को ये कार्ड जारी करने का है। ई-नाम के जरिये किसान सारे कृषि बाजारों से जुड़ जाएगा और जहां अच्छा भाव मिले उपज वहां बेच सकेगा। सरकारी कदमों के कारण दलहनों का उत्पादन बढ़ा है। 2016-17 में अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,625 से बढ़ाकर 5,050 रुपए, उड़द 4,625 से बढ़ाकर 5,000 और मंुग 4,850 से बढ़ाकर 5,250 रुपए प्रति क्विंटल किया गया है। रबी फसलों का समर्थन मूल्य भी काफी बढ़ा दिया गया है। इस साल बजट में खेती के कर्ज के लिए 10 लाख करोड़ रखे गए हैं। खेती में आने वाली नई टेक्नोलॉजी और नवीनतम जानकारियों से किसानों को वाकिफ कराने के लिए दूरदर्शन ने खास किसान चैनल शुरू किया है। 

     गोलीबारी में पांच लोगों की मौत पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से इस्तीफा मांगना कांग्रेस की दीवालिया सोच बताता है। यहां यह बताना मौजू़ होगा कि मध्यप्रदेश के ही बैतूल जिले के मुलताई में दिग्विजय सिंह के शासन (1998) में गोलीबारी से 24 किसान मारे गए थे। तब तो सिंह ने इस्तीफा नहीं दिया था। क्या काग्रेस ने उनसे इस्तीफा मांगा था? क्या सोनिया गांधी वहां गई थीं? वास्तविकता तो यह है कि मध्यप्रदेश में चौहान के रूप में अब अत्यधिक किसान हितैषी मुख्यमंत्री है। उनके फोकस के कारण पिछले दो साल में राज्य में कृषि वृद्धि दर 20 फीसदी हो गई है। कृषि हित में उठाए कदमों में कृषि कर्ज पर शून्य प्रतिशत ब्याज सब्सिडी, किसानों को बिजली पर 4,500 करोड़ रुपए की सब्सिडी और कृषि क्षेत्र को करीब 10 घंटे अबाधित बिजली सप्लाई। सिंचाई क्षेत्र को 7.5 लाख हैक्टेयर से 40 लाख हैक्टेयर तक बढ़ा दिया गया है। सभी फसलों पर वाजिब दाम के लिए मध्यप्रदेश सरकार अब मूल्य स्थिरता निधि स्थापत करने वाली है। प्रदेश सरकार ने मालवा की नदियों में नर्मदा लाने का अनोखा कार्यक्रम शुरू किया है और क्षिप्रा के साथ नर्मदा को तो जोड़ भी दिया है। एक लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़कंे बनाई गई हैं। किसानों को सबसे बड़ा बीमा कवरेज दिया जा रहा है। रबी के लिए 4,060 करोड़ और खरीफ के लिए 4,416 करोड़ रुपए के दावे प्राप्त हुए हैं। 

     मौजूदा समस्या अनाज, दलहन, प्याज और सोयाबिन में उत्पादन अधिक होने और बाजार में भाव मिलने से उपजा है। मुख्यमंत्री ने तो किसान संगठनों द्वारा रखी गई 13 में से 11 मांगें मान भी ली हैं। मुख्यमंत्री ने मारे गए लोगों के परिजनों को 1-1 करोड़ रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की है। मैं किसानों से आग्रह करता हूं कि वे अवसरवादी नेताओं के बहकावे में आएं। किसानों की विभिन्न चिंताएं दूर करने के लिए लगातार प्रयास करने होंगे। यह सोचना नादानी होगी कि इन्हें रातोंरात हल कर लिया जाएगा। गोदाम बनाने की बात हो, कोल्ड स्टोरेज चैन, रेफ्रिजरेटर वैन, बिजली, फूड प्रोसेसिंग यूनिट के माध्यम से वैल्यू एडिशन, किफायती समय पर कर्ज और बाजार की जानकारी तक पहुंच, कृषि से जुड़े सारे मसलों पर एनडीए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। प्रधानमंत्री किसान की दशा सुधारने और उनकी आय दोगुनी करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

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